नई दिल्ली. चीफ जस्टिस (सीजेआई) बीआर गवई ने कहा है कि भारतीय न्याय व्यवस्था रूल ऑफ लॉ यानी (कानून के शासन) से चलती है, इसमें बुलडोजर एक्शन की जगह नहीं है. सीजेआई शुक्रवार 3 अक्टूबर को मॉरीशस में आयोजित सर मॉरिस रॉल्ट मेमोरियल लेक्चर 2025 में बोल रहे थे. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने हाल के फैसले में अदालत ने स्पष्ट किया था कि किसी आरोपी के खिलाफ बुलडोजर चलाना कानून की प्रक्रिया को तोडऩा है.
सीजेआई ने कहा-सरकार एक साथ जज, जूरी और जल्लाद नहीं बन सकती. बुलडोजर शासन संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के संरक्षण के अधिकार) का उल्लंघन है. लेक्चर के दौरान मॉरीशस के राष्ट्रपति धरमबीर गोखूल, प्रधानमंत्री नवीनचंद्र रामगुलाम और मुख्य न्यायाधीश रेहाना मंगली गुलबुल भी मौजूद थे.
सीजेआई ने तीन तलाक खत्म करने, व्यभिचार कानून को निरस्त करने, चुनावी बॉन्ड स्कीम और निजता को मौलिक अधिकार मानने जैसे फैसलों का भी जिक्र किया. गवई ने कहा कि इन सभी फैसलों ने दिखाया कि अदालत ने रूल ऑफ लॉ को एक ठोस सिद्धांत बनाया है, जिससे मनमाने और अन्यायपूर्ण कानून खत्म किए गए.
सीजेआई गवई ने कहा कि भारत में रूल ऑफ लॉ केवल नियमों का सेट नहीं है, बल्कि यह नैतिक और सामाजिक ढांचा है, जो समानता, गरिमा और सुशासन सुनिश्चित करता है. उन्होंने महात्मा गांधी और डॉ. भीमराव अंबेडकर के योगदान का हवाला देते हुए कहा कि उनका दृष्टिकोण बताता है कि लोकतंत्र में कानून का राज ही समाज को न्याय और जवाबदेही की ओर ले जाता है.
इससे पहले सीजेआई गवई ने 24 सितंबर को कहा था कि बुलडोजर एक्शन के खिलाफ आदेश देने पर उन्हें बेहद संतुष्टि मिली थी. इस फैसले में मानवीय पहलू भी जुड़ा था. किसी परिवार को सिर्फ इसलिए परेशान नहीं किया सकता कि उस परिवार का एक सदस्य अपराधी है. गवई ने कहा, बेंच में मेरे साथ जस्टिस केवी विश्वनाथन भी शामिल थे. हालांकि ज्यादातर श्रेय मुझे दिया गया है, लेकिन मैं यह भी कहना चाहता हूं कि इस फैसले को लिखने का क्रेडिट जस्टिस विश्वनाथन को भी जाना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट ने नवंबर 2024 में बुलडोजर एक्शन पर फैसला सुनाया था. कोर्ट ने कहा था कि अफसर जज नहीं बन सकते. वे तय न करें कि दोषी कौन है. बेंच ने ये भी कहा था कि 15 दिन के नोटिस के बगैर निर्माण गिराया तो अफसर के खर्च पर दोबारा बनाना पड़ेगा. अदालत ने 15 गाइडलाइंस भी दीं थीं.
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मेले में गोलगप्पे खाने से बाप-बेटे समेत तीन की मौत, मचा हाहाकार
पटना. गोलगप्पे खाने से एक ही परिवार के तीन लोगों की मौत हो गई है. मरने वालों में पिता और दो मासूम बेटे हैं. इस घटना के बाद पूरे क्षेत्र में कोहराम मच गया है. आस पास के लोगों का कहना है कि यह वाक्या चंदौस मेले से जुड़ा है. बाप अपने दो बेटे के साथ इस मेरे में गोलगप्पा खाया था. गोलगप्पे खाने के बाद तीनों की तबीयत अचानक बिगड़ी. परिवार के लोग कुछ समझ पाते इससे पहले एक-एक कर तीनों की मौत हो गई. इस पूरे मामले की जांच चल रही है.
पटना से सटे पालीगंज के करहरा गांव में पिता और उनके दोनों बेटों की मौत ने पूरे इलाके को दहला दिया है. परिवार के लोग ने बताया कि शुक्रवार को पालीगंज के चंदौस मेले में गए थे, जहां सभी ने गोलगप्पा खाया था. घर लौटने के बाद रात में सभी ने खाना खाया, लेकिन देर रात तीनों की तबीयत अचानक बिगड़ गई. उन्हें तेज पेट दर्द और उल्टी होने लगी. परिवार के लोग आनन फानन में सभी को लेकर अस्पताल जाने की तैयारी ही कर रहे थे, इससे पहले एक की मौत घर पर ही हो गई.
बाकी दो लोगों को परिवार के लोग तुरंत पालीगंज अनुमंडल अस्पताल पहुंचे. जहां पर उनको बेहतर इलाज के लिए पीएमसीएच रेफर कर दिया गया. लेकिन, परिवार के लोग दोनों को लेकर पटना के पीएमसीएच निकलते इससे पहले दोनों की मौत अस्पताल में हो गई. मृतकों की पहचान नीरज साव और उनके दो बेटों – निर्मल कुमार (8 वर्ष) और निर्भय कुमार (4 वर्ष) के रूप में हुई है.
एक ही परिवार के तीन लोगों की मौत के बाद पूरे गांव में मातम छा गया है. इस घटना की सूचना मिलते ही पुलिस और एफएसएल की टीम भी घर पर पहुंची और अज्ञात के खिलाफ प्राथमिक दर्ज किया. पुलिस ने अपनी जांच में फूड प्वाइजनिंग की आशंका जताई है, हालांकि असली वजह पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद ही स्पष्ट हो पायेगा. पुलिस का कहना है कि पूरे मामले की जांच की जा रही है. मृतकों के खाने के सैंपल भी लिए गए हैं.
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‘भारत कानून से चलता है, बुलडोजर से नहीं’, CJI गवई का बड़ा बयान
भारत के चीफ जस्टिस (CJI) बी. आर. गवई ने शुक्रवार (3 अक्टूबर) को मॉरीशस में एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि भारतीय न्याय व्यवस्था बुलडोजर से नहीं बल्कि कानून के शासन से चलती है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले का जिक्र किया जिसमें कथित अपराधियों के घरों को गिराने की कार्रवाई को कानून और संविधान के खिलाफ बताया गया था।
सीजेआई गवई ने कहा कि किसी अभियुक्त का घर गिराना कानूनी प्रक्रिया की अनदेखी करना है। यह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत आश्रय के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है। उन्होंने दोहराया कि भारत का लोकतंत्र और न्याय व्यवस्था केवल कानून के शासन पर आधारित है।
अपने भाषण में जस्टिस गवई ने सुप्रीम कोर्ट के कई ऐतिहासिक फैसलों का जिक्र किया, जिनमें 1973 का केशवानंद भारती केस भी शामिल था। उन्होंने कहा कि कार्यपालिका की अपनी सीमाएं हैं और वह न्यायपालिका की भूमिका नहीं निभा सकती।
सीजेआई ने बताया कि सामाजिक क्षेत्र में बने कानूनों ने ऐतिहासिक अन्याय को दूर करने में मदद की है। हाशिए पर रहे समुदायों ने अपने अधिकारों की रक्षा के लिए हमेशा कानून और न्याय व्यवस्था पर भरोसा किया है।
अपने संबोधन में गवई ने हाल के महत्वपूर्ण फैसलों का उल्लेख किया। इनमें मुस्लिम समाज में तीन तलाक की प्रथा को खत्म करने वाला फैसला और निजता को मौलिक अधिकार घोषित करने वाला फैसला शामिल रहा।
सीजेआई ने महात्मा गांधी और डॉ. बी. आर. आंबेडकर की दूरदर्शिता को भी याद किया। उन्होंने कहा कि भारत में कानून का शासन केवल नियमों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सुशासन और सामाजिक प्रगति का आधार है।





